जया एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत की कथा इस प्रकार है:
जया एकादशी व्रत कथा:
प्राचीन काल में स्वर्गलोक में इंद्र के राज्य में एक गंधर्व था, जिसका नाम पुष्पदंत था। उसकी पत्नी का नाम जया था। एक बार पुष्पदंत और जया ने इंद्र के दरबार में अनजाने में एक गलती कर दी। इंद्र ने उन्हें श्राप देकर मृत्युलोक में भेज दिया और कहा कि तुम दोनों पृथ्वी पर राक्षस योनि में जन्म लोगे।
पुष्पदंत और जया पृथ्वी पर राक्षस योनि में जन्म लेकर हिमालय पर्वत पर रहने लगे। पुष्पदंत का नाम मुर और जया का नाम चित्रलेखा हो गया। वे दोनों बहुत ही भयंकर राक्षस बन गए और लोगों को परेशान करने लगे।
एक बार माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन, एक ऋषि हिमालय पर्वत पर तपस्या करने आए। मुर और चित्रलेखा ने ऋषि को परेशान करना शुरू कर दिया। ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया और कहा कि तुम दोनों इसी समय मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे।
श्राप के प्रभाव से मुर और चित्रलेखा की मृत्यु हो गई। उनकी आत्मा शुद्ध हो गई और वे पुनः स्वर्गलोक में जा पहुंचे। इंद्र ने उन्हें पुनः गंधर्व योनि में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया।
इस घटना के बाद से जया एकादशी का व्रत बहुत ही पवित्र माना जाने लगा। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ रखता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
व्रत विधि:
- एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
- भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें फल, फूल, तुलसी दल आदि अर्पित करें।
- पूरे दिन व्रत रखें और केवल फलाहार करें।
- रात में भजन-कीर्तन करें और भगवान विष्णु की कथा सुनें।
- द्वादशी के दिन सुबह स्नान करके ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।