सफला एकादशी

सफला एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है जो पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है तथा जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। सफला एकादशी की कथा इस प्रकार है:


सफला एकादशी की कथा:

प्राचीन काल में महिष्मती नगरी में एक राजा राज्य करता था जिसका नाम महिष्मान था। उसके चार पुत्र थे, जिनमें से सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक बहुत ही दुष्ट और पापी था। वह हमेशा दुराचार और अधर्म में लिप्त रहता था। उसके इस व्यवहार से परेशान होकर राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया।

लुम्पक जंगल में रहने लगा और वहाँ वह चोरी, डकैती और हिंसा करके अपना जीवन यापन करने लगा। एक बार पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन उसे इतनी ठंड लगी कि वह बेहोश हो गया। अगले दिन एकादशी को सुबह उसकी आँख खुली तो वह बहुत कमजोर और दुखी था। उसने सोचा कि आज कुछ भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए, लेकिन उसकी हालत ऐसी थी कि वह कुछ कर नहीं सकता था।

भूख और प्यास से व्याकुल लुम्पक ने जंगल में पेड़ों के फल तोड़कर इकट्ठे किए और उन्हें भगवान विष्णु को अर्पित करते हुए कहा, “हे प्रभु, मैं आपको यह फल अर्पित करता हूँ। कृपया मेरी रक्षा करें।” उसने अनजाने में ही सही, सफला एकादशी का व्रत रख लिया था। रात भर वह भगवान विष्णु का नाम जपता रहा।

अगले दिन द्वादशी को उसने फिर से भगवान विष्णु की पूजा की। इस व्रत के प्रभाव से उसका हृदय परिवर्तन हो गया और वह पापमुक्त हो गया। कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

इस कथा का सार यह है कि सफला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।


सफला एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।