उत्पन्ना एकादशी

उत्पन्ना एकादशी की कथा हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह कथा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है। उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस एकादशी की कथा इस प्रकार है:


उत्पन्ना एकादशी कथा:

एक बार की बात है, देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवताओं की सेना का नेतृत्व भगवान विष्णु कर रहे थे। युद्ध कई दिनों तक चला और दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। अंत में, देवताओं ने राक्षसों को पराजित कर दिया, लेकिन युद्ध के बाद भगवान विष्णु बहुत थक गए और उन्हें नींद आने लगी।

भगवान विष्णु बद्रिकाश्रम में एक गुफा में विश्राम करने के लिए गए। वहां उन्होंने गहरी नींद में सोने का निर्णय लिया। उनकी नींद इतनी गहरी थी कि वह कई युगों तक सोते रहे। इस दौरान, एक राक्षस मुर नाम का उनके पास आया और उन पर हमला करने की कोशिश की। मुर राक्षस बहुत शक्तिशाली था और उसने भगवान विष्णु को जगाने की कोशिश की।

तब भगवान विष्णु के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई, जो एक सुंदर स्त्री के रूप में थी। यह देवी एकादशी थीं। उन्होंने मुर राक्षस से युद्ध किया और अंत में उसे पराजित कर दिया। मुर राक्षस का वध करने के बाद, देवी एकादशी ने भगवान विष्णु को जगाया और उन्हें बताया कि उन्होंने मुर राक्षस का वध किया है।

भगवान विष्णु ने देवी एकादशी को आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भी व्यक्ति उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखेगा और इस दिन पूजा-पाठ करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी और उसके सभी पापों का नाश हो जाएगा। इस प्रकार, उत्पन्ना एकादशी का व्रत शुरू हुआ और यह एकादशी सभी एकादशियों में सबसे पहली एकादशी मानी जाती है।


उत्पन्ना एकादशी का महत्व:

उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्रदान करता है और उनके जीवन में सुख-शांति लाता है। इस दिन भगवान विष्णु और देवी एकादशी की पूजा की जाती है और व्रत कथा सुनने का विशेष महत्व है।


यह कथा भक्तों को धर्म, नैतिकता और आध्यात्मिक जीवन की ओर प्रेरित करती है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखकर और कथा सुनकर भक्त भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।